Thursday 11 October 2012


आज एक सनसनीखेज खबर मुझे यकायक Morning Walk के दौरान मेरे प्रभात फेरी के संगी जिसे आप चाहें तो बिलकुल नये व ताजा बने मित्र भी कह सकते हैं से अनायास ही मिली।इन दिनों किसी काम से दिल्ली आया हुआ था और कई दिनों से दिल्ली के लोदी गार्डन मेmorning walk  कर रहा था।  यह खबर मुझे तब  मिली जब मैने उन्हें एक चुटकुला सुनाया। चुटकुला यों था कि
एक सरदार जी ने अपने एक मित्र से शर्त लगाई थी के वे एक घण्टे के दौरान बारह बोतल बियर तक पी सकते हैं। शर्त के अनुसार अगले दिन सरदार जी के फ्लैट मे नियत समय पर दोनो मित्र व बारह बोतलें उपस्थित थी। सरदार जी हर एक बोतल को पीने के बाद toiletजाते और फिर वापस आ बैठ कर एक बोतल और पी जाते। पूरी बारह बोतलें के विसर्जन व शर्त की रकम के पश्चात रहस्य खुला कि इन सरदार जी ने toilet में 11 सरदार जी और भी खड़े कर रखे थे। एक आता था एक जाता था।  
मेरे मित्र ने कहा भाई साहब आप मुझे जो चुटकुला सुना रहें हैं मैं उस चुटकुले के उद्गम स्थल का साक्षी हूं। मैंने कहा चलिये मुझे भी इसके उद्गम स्थल या इसकी etymology से परीचित करवाइये।
अब वह कहानी शुरू होती हो जिसने मेरी विगत बीस साल की morning walk कृतार्थ कर दी। नव मित्र ने कहा::क्या आप जानते हैं कि मनमोहन सिंह जी कभी कोई गलती क्यों नहीं कर सकते ?
मैंने नहीं की मुद्रा सर बायें से दायें हिलाया।
अरे भई मनमोहन सिंह नाम का कोई व्यक्ति अगर होगा तब तो गलतियां करेगा। सुनकर चौंकिये मत। मनमोहन सिंह नाम का कोई व्यक्ति भारत में है ही नहीं।
मैं विस्मय से मित्र को घूर रहा था कि कहीं उसने सुबह सुबह ही तो शिवबूटी का सेवन नहीं कर लिया है।
मित्र ने भांपते हुये कहा नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।मैं आपको पूरी बात खोलकर बताता हूं।
वाजपेयी जी की 1997 व 1999 में सरकार बनने के पश्चात हमारे भूतपुर्व वित्त मन्त्री सरदार मनमोहन सिंह भारत से कूच कर गये। आजकल वे कहां पर हैं इसके विषय विषय में भिन्न भिन्न मत है। कुछ सुत्रों का मानना है कि वे अमेरीका के किसी विश्वविद्यालय मे देखे गये हैं। वे सुत्र फौरी तौर पर कहने मे अक्षम थे कि वे वहां पढ़ रहे थे या पढा रहे थे। चलिये विश्वविद्यालय एवं अध्ययन उनके मनपसन्द काम है और उनकी जीवन शैली से मेल खाते हैं तो सम्भावनायें बनती हैं।
किन्हीं और सुत्रों का मानना है कि वे रशिया के जंगलों में सुभाष बोस के साथ देखे गये हं। अब यह राग मत अलापिये कि सुभाष बोस तो दिवंगत हो चुके हैं। मुझे व्यक्तिगत तौर पर दोनो के विषय में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है।
मुझे यह सब किसी ऐयार के माया जाल सा प्रतीत हो रहा था।
अब आप पुछेंगे कि यह जो संसद के सदन में गाहे बेगाहे दिख जाते हैं यह कौन हैं । तो भाई साहब यहीं से आपके चुटकुले की उद्गमस्थली शुरु होती है। 
सन् 2004 में कांग्रेस ने संसद में जब सरकार बनाने की पेशकश की तो मादाम जी का प्रधान मन्त्री बनना तय था। अब उन्होंने इस पद को स्वीकार करने से क्यों मना किया , यह एक और कहानी है, वह फिर कभी। अब मादाम नहीं तो कौन। प्रणब दा तो तो बीस वर्षों से कतार में थे। लेकिन खतरा था कि कापीराइट मिल जाने पर असली लेखिका का नाम कहीं सुर्खियों के बजाय हाशिये में नहीं आजाये। वहीं एक शातिर किस्म के राजनीतिक प्राणी उपस्थित थे। उन्हों ने मनमोहन सिंह जी का नाम सुझाया। सब चौंके कि अब कहां ढुंढा जाये उन्हें उनके स्वेच्छित अज्ञातवास से। इन महानुभाव ने कहा कि देखिये ये बड़े बड़े प्रकाशन अक्सर लेखक के नाम पर एक मन गढन्त नाम रख लेते हैं और असली लेखक को कोई श्रेय नहीं मिलता जिससे उन्हें कालान्तर में royalty  सरीखे किसी मुद्दे से दो दो हाथ नहीं होना पड़े।
तो मनमोहन सिंह जी को भी ढुंढने की कोई क्या आवश्यकता है ? आप भी किसी नत्था सिंह व मक्खा सिंह को मनमोहन सिंह जी के स्थान पर स्थापित कर दीजिये। कहावत भी है नत्था सिंह या मक्खा सिंह All Singh same thing.
भाई साहब आप भी जानते हैं कि दाढ़ी के पीछे और पगड़ी के नीचे  से शक्ल कितनी दिख पड़ती है। किसी को भी पगड़ी और दाढ़ी लगाकर बैठा दीजिये कोई नहीं जान पायेगा। कभी कभी गुस्ताखी माफ के कार्यक्रम वालों से मुखौटा मांग लायेंगे। संवाद हम IVRS  से करवा देंगे। प्रेस कांफ्रेस जितनी कम हो शेयष्कर हैं। वहां IVRS से काम चलाना जोखिम का काम है। चुनिन्दा सम्पादकों को बुलाकर प्रेस कांफ्रेन्स भी दो चार साल में एकाध करवा लेंगे। टीवी पर तो manage करने के बहुत से साधन हैं। पिछले दिनों एक हालीवुड फिल्म में कैनेडी को डस्टिन हाफ्मैन से हाथ मिलाते हुये दिखाया गया था। जबकि कैनेडी की मौत डस्टिन हाफ्मैन के पैदा होने से पहले ही हो चुकी थी।
बहुत बढिया सुझाव दिया है मैने, सोचिये और तुरन्त कार्वान्वित कीजिये। 
द्वितीय विश्व युद्ध की प्रचलित कहानियों में यह भी प्रचलित है कि हिटलर का देहान्त पहले ही हो चुका था, युद्ध के अन्तिम दो वर्ष उसके जैसे दिखने वाले चार छद्म पात्रों को सैन्य बल ने हिटलर की नांई इस्तेमाल किया था।
मादाम भी समझ रहीं थी कि कुर्सी पर किसी भी विश्वास पात्र को बैठा दो, नीयत बदलने में कितनी देर लगती है। एक देहाती कहावत है कि जोरु और गोरु किसकी। जिसके खुंटे से बन्धी उसकी। तो भाई साहब सत्ता भी जोरु सम ही है, जिसकी कुर्सी से बन्धी उसकी। नरसिंहा राव जी का उदाहरण ताजा था। मादाम को पांच वर्षों तक हाशिये पर बैठा ही दिया था।
तो इस सारे परिप्रेक्ष्य में यह सुझाव बेहद सुगम प्रतीत हो रहा था। जब कुर्सी पर सिर्फ एक नाम ही बैठा हो तब तो सत्ता अपनी गांठ में ही चिरन्तन बनी रहेगी।
तो भैये अब आप ही बताइये विपक्ष की सारी बातें कि मनमोहन सिंह जी जी या कोलगेट के लिये जिम्मेदार हैं, बात सिरे से गलत है या नहीं।
इस बार मैंने सर उपर से नीचे हिलाते हुये हामी भरी। मैने मित्र से पूछा भाई साहब सारे हिन्दुस्तान को इसकी जानकारी नहीं है तो आप कैसे जानते हैं यह सब। क्या सबूत है कि आप लन्तराइनियां नही हांक रहें हैं।
और आप हैं कौन यह भी तो बताइये।
पहली बात का उत्तर यह है कि वह शातिर व्यक्ति जिसने यह सुझाव देकर मादाम को उबारा वो मैं ही था।  So it is all from Horse’s mouth.
भाईसाहब आपको भी दाढ़ी के पीछे व पगड़ी के नीचे से मैं पहचान नहीं पा रहा हूं। उन्होंने मुस्कराते हुये उत्तर दिया कि दाढी और पगड़ी को भूल जाइये ये तो क्षेपक भी हो सकते हैं। कही गई बातों पर गौर कीजिये और सूझिये। व्यक्तित्व व बातें दोनो ही रहस्य्मयी थी। जाते जाते मैने उनकी विदा होती हुयी S Model की मर्सिडीज को घूर रहा था। तभी सुझा कि इस कार ने हो न हो 23 नम्बर Wellington Road की दिशा पकड़ी है। अब सारा रहस्य साफ भी हो गया और प्रामाणिक भी ॥  

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